Attaining the vision of God and the Guru, touching Them, embracing Them, drinking the water that has washed Their feet, worshipping Them - essentially any service rendered to God and Guru is done with the purpose of attaining the grace of God, the grace of the Guru, and Divine love for God.
Bhaktapadadhūri āra bhaktapada-jala।
Bhakta bhukta-avaśiṣṭha, tina mahābala।
Eī tina sevā haiṃte kṛṣṇa prema haya॥ (Gauranga Mahaprabhu)
In other words, any service to God and Guru is performed to develop love for God.
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Mere worship, rituals, etc., will not lead us to our goal. Only by shedding tears can we attain the goal. Maintain a relationship solely with Radha Krishna and the Guru; exclusivity it involves only these three. Other deities do not come under this. By worshipping Radha, all other Goddesses are worshiped automatically; there is no need to worship Them separately. Therefore, do not divert your attention elsewhere. Bow down to Them and do not harbor any ill-will towards Them, but worship only Radha Krishna and the Guru.
(Understand all these principles by studying the Shree Maharaj Ji's Divine literature. If you have any questions after that, seek clarity from the preachers of Shree Maharaj Ji.)
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Veda Vyas has said:
“Go koṭi dānaṃ grahaṇeṣu kāśī, prayāg gaṃgā yut kalpa vāsaḥ।
Yajñāgataṃ meru suvarṇa dānaṃ, Goviṃda nāmnāna kadāpi tulyam॥
Take a balance and on one pan of the scale place the following:
1) Virtues earned by donating one crore cows at the time of the total solar eclipse in Kashi, 2) virtues earned by residing in Prayag by doing 'kalpavās' for 10,000 years (meaning residing on the banks of Ganga), and 3) virtues earned by performing a great yagya and donating a mountain of gold.
On the other side, just put the Divine name of Govind. The side of the balance, which has the name Govind, will tilt down and touch the ground. In other words, the name Govind will outweigh the pan, full of immense merits. This means neither gyān, yog, sacrificial rites, fasting, nor any other spiritual practice can equal devotion. Without devotion, all other practices are fruitless - they cannot lead to liberation from maya, nor can they lead to God realization. In fact, without the grace of devotion, even the fruits of those practices cannot be attained.
Such is the invaluable glory of God's Divine name. God's name does not merely refer to saying the letters but rather chanting the name in which you have imbued the sentiments of love for God.
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Chuṭaiṃ bhrātā chuṭaiṃ saṃga khelane vāle।
Brothers will be left behind; the ones you play with will be left behind
Chūṭaiṃge eka dina naihara, sajana ghara sabako jānā hai।
Everyone must leave behind their maternal home one day and go to their beloved's home.
Jo karanā hai so kara jaldī, yahī kahanā hamārā hai।
Do what needs to be done quickly; this is my advice.
Jo āe kāla paravānā, usī dina saba ko jānā hai।
Everyone must leave the very moment they get the summons of death. And who knows when the summons will come?
The Vedas say, “Na śwaḥ śva: upāsīta ko hi puruṣasya śvo ved.” - O humans! Don't postpone good deeds until tomorrow; do them immediately. You may or may not have tomorrow.
Kaumāra ācaret prājño dharmān bhāgavatāniha।
Prahlad advised the demon children - "Children! Start devotion from a young age. The intoxication of youth and the pride of the body prevent one from turning towards God. After marriage, one suffers many hardships and only then remembers God. Therefore, everyone must start devotion early on. Do it right now!"
Man doesn't understand the importance of the human body. People only know how to somehow spend or finish this life. Old people tell their children, "My life is over." What is over? What great feat did you accomplish? You studied, got a job, earned money, built a few houses, produced a few children, and then died. You cried throughout your life, and after death, there's even more terrible crying while you wander around the 8.4 million species.
We have met Saints countless times and even descensions of God. But we used our intellect to reject Them all. When They left, we sang kirtans of their glories.
(If you earn through devotional practice in this life, then there's nothing to fear - you'll carry it with you to the next life) - We have had and will have infinite births. So if we've earned 10 rupees (in devotion) in this life, it will become 12 in the next life, then 14, then 16 rupees. In other words, we will automatically receive the fruits of Sadhana done in the past birth and build on top of that. In devotion, we will not go backward; there is only progress.
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(Principle of charity) You will receive the fruits of charity based on who you are donating to. One who desires to attain God and escape the bondage of maya should offer everything in service to God and Saints.
हरि गुरु का दर्शन, उनका स्पर्श, उनका आलिंगन, उनके चरण धोकर पीना, उनकी पूजा करना - अर्थात् महापुरुष और भगवान् के निमित्त कोई भी सेवा इसलिए की जाती है कि हमें भगवान् की कृपा, गुरु कृपा और उससे भगवत्प्रेम प्राप्त हो।
भक्तपदधूरि आर भक्तपद-जल। भक्त भुक्त-अवशिष्ठ, तिन महाबल॥ एई तिन सेवा हैंते कृष्ण प्रेम हय। (गौरांग महाप्रभु)
यानी कोई भी सेवा भगवान् या महापुरुष के निमित्त इसलिए की जाती है कि भगवान् से प्रेम हो।
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पूजा पाठ आदि से कुछ काम नहीं बनेगा, आँसू बहाने से ही काम बनेगा। केवल राधा-कृष्ण और गुरु से सम्बन्ध रखो - अनन्यता में केवल ये तीन आते हैं। बाकी देवी देवता नहीं आते। राधा की भक्ति करने से बाकी सब देवियों की भक्ति हो जाती है, अलग-अलग करने की ज़रूरत नहीं है। इसलिए बाकी कहीं और न जाओ, उनको प्रणाम करो, उनसे दुर्भावना नहीं करो, लेकिन राधा-कृष्ण और गुरु की ही उपासना करनी है।
ये सब बातें श्री महाराज जी के सिद्धांत ग्रन्थ को पढ़कर समझो। इसके बाद प्रश्न हों तो श्री महाराज जी के प्रचारकों से पूछकर समझ लो।
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वेदव्यास ने कहा है -
गो कोटि दानं ग्रहणेषु काशी, प्रयाग गंगा युत कल्प वासः।
यज्ञागतं मेरु सुवर्ण दानं, गोविंद नाम्नान कदापि तुल्यम्॥
एक तराज़ू के एक पलड़े में - 1) काशी में पूर्ण चंद्र ग्रहण के अवसर पर एक करोड़ गाय के दान करने का पुण्य, 2) 10,000 वर्ष तक प्रयाग में माघ महीने में कल्पवास करने का पुण्य (गंगा के कछार में ही रहकर घर नहीं आने को कल्पवास कहते हैं) और 3) बहुत बड़ा यज्ञ करके सोने का पहाड़ दान करने का पुण्य रख दीजिये।
दूसरे पलड़े में गोविंद नाम रख दीजिए। तो गोविंद नाम का पलड़ा नीचे आ जायेगा और पहला पलड़ा जिसमें सारे पुण्य रखे थे, वो ऊपर चला जाएगा। यानी भक्ति की बराबरी, न ज्ञान, न योग, न यज्ञ, न व्रत, न कोई और साधन कर सकता है। भक्ति के बिना कोई भी साधन निरर्थक है। वो न मायानिवृत्ति करा सकता है न भगवत्प्राप्ति करा सकता है। यहाँ तक कि उस साधन का अपना फल भी भक्ति की कृपा के बिना नहीं दिया जा सकता।
इतना मूल्यवान है भगवन्नाम। भगवन्नाम माने 'क' 'ख' 'घ' नहीं (यानी केवल अक्षर या शब्द नहीं) बल्कि जिस नाम के लेने में भगवान् की भावना भरी हो।
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छुटैं भ्राता छुटैं संग खेलने वाले।
छूटैंगे एक दिन नइहर, सजन घर सबको जाना है।
जो करना है सो कर जल्दी, यही कहना हमारा है।
जो आए काल परवाना, उसी दिन सब को जाना है।
कब आए परवाना क्या पता।
न श्वः श्व: उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद - वेद कहता है, अरे मनुष्यों ! अच्छे काम को कल के लिए मत टालो, उसको तुरंत करो। कल तुमको मिले न मिले।
कौमार आचरेत् प्राज्ञो धर्मान् भागवतानिह।
प्रह्लाद ने राक्षश के बच्चों को बिठाकर उपदेश दिया - बच्चों! छोटी सी उमर में ही भक्ति शुरू कर दो। युवावस्था का नशा हो जाता है। शरीर का अहंकार हो जाता है तो वो भगवान् की ओर नहीं चलता। फिर तो ब्याह-व्याह करके चप्पल-जूते खूब खा लेता है तब भगवान् याद आते हैं। इसलिए जल्दी अभी से शुरू कर दो सब लोग।
मनुष्य मानव देह का महत्त्व नहीं समझता। लोग इस शरीर को किसी प्रकार बिता दें, समाप्त कर दें बस इतना ही जानते हैं। बूढ़े आदमी अपने बच्चों को कहते हैं कि मेरी तो बीत गई। क्या बीत गई? क्या कमाल किया तुमने - पढाई की, नौकरी की, कमाया, दो-चार कोठी बनाई, दो-चार बच्चे पैदा किये, और मर गए। सारे जीवन रोए और मरने के बाद चौरासी लाख में घूमकर और भयानक रोना ही है।
अनंत बार हमें संत मिले, भगवान् के अवतार भी मिले। लेकिन सब जगह हमने बुद्धि लगाकर उनको रिजेक्ट कर दिया। और जब वो चले गए, कीर्तन करते हैं- “हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।”
(अगर इस जन्म में साधना करके कमाई कर लो तब तो डर की बात नहीं - उसको अगले जन्म में साथ ले ही जाएँगे) - हमारे अनंत जन्म होते आये हैं, होंगे। तो अगर हमने इस जन्म में 10 आना कमाया है (भक्ति में), अगले जन्म में 12 आना हो जायेगा फिर 14, फिर 16 आना हो जायेगा। पीछे नहीं जाना है, आगे की तरफ ही बढ़ना है। पिछला धन (पहले की साधना का फल) तो पका पकाया मिल जायेगा।
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(दान का सिद्धांत) दान जिस पात्र में करोगे, उसी पात्र के अनुसार फल मिलेगा। जिसको भगवान् की चाह हो, मायानिवृत्ति की चाह हो, वो भगवान् और महापुरुष के निमित्त ही सब कुछ करे।