Among 7 billion people, there are not even seven crores upon whom God has bestowed such a grace that they meet someone who gives them the right knowledge about what we should do so that our misery goes away and we attain divine bliss. Those who are lucky to have understood this through a saint are also working towards attaining the 84 lakh material life forms instead.
Why? There is just one answer to this - Carelessness!
Seriously ponder every day in solitude, being unbiased and keeping God in front of you - In 24 hours, how much time did we spend on the body, and how much time did we take out for the soul? In this, how much time could we have saved for the soul?
Practice chanting the name Radhey with each breath in your idle time. If you don't think of God, you will have to think about the material world because of the practice of uncountable lifetimes. Do not involve your mind in bad associations during idle time and cause your downfall. Make a firm resolve and become adamant about not listening to the mind if it goes against this.
What is the difficulty in chanting the name of Radhey with breath? At least practice enough to get a human body after death! If our mind is in the Godly realm at the last moment, we will receive a human body with certainty, and then we can complete the remaining sadhana. If we practice for ten days, we cannot stop ourselves from chanting Radhey.
Do not procrastinate. Do not be careless. Ponder seriously - We may not live to see tomorrow. If we utilize each moment, we will rapidly progress in our sadhana.
सात अरब आदमियों में सात करोड़ भी ऐसे नहीं हैं जिनके ऊपर भगवान् की ऐसी कृपा हो कि कोई सही सही ज्ञान करा दे कि क्या करने से तुम्हारा दुःख चला जायेगा और आनंद मिल जायेगा। और जो लोग सौभाग्य से ये जान चुके हैं किसी महापुरुष से, वे लोग भी फिर 84 लाख का हिसाब बिठा रहे हैं।
क्यों? एक उत्तर है - लापरवाही।
सब लोग अकेले में निष्पक्ष होकर, भगवान् को सामने खड़ा करके रोज़ सोचें - आज हम ने 24 घंटे में शरीर के लिए कितना समय दिया और आत्मा के लिए कितना समय दिया? इसमें हम आत्मा के लिए कितना समय बचा सकते थे?
खाली समय में राधे नाम का श्वास श्वास से जाप करने का अभ्यास करें। अगर हम भगवद् चिंतन नहीं करेंगे तो संसार का चिंतन करना पड़ेगा क्योंकि तमाम जन्मों का अभ्यास है। संसारी चिंतन मन को अच्छा लगता है क्योंकि उसको अपने मुआफ़िक सामान मिल रहा है। लेकिन उसका कोई लाभ नहीं, बल्कि हानि है क्योंकि मन में संसार आ रहा है। खाली समय में कुसंग करके अपना सर्वनाश न करें। प्रतिज्ञा कर लें, ज़िद्द कर लें कि अगर मन इसके विरुद्ध करेगा तो इसको मार डालेंगे।
केवल श्वास से राधे बोलने में क्या परिश्रम है? इतना अभ्यास तो कर लें कि मरने के बाद कम से कम मानव देह तो मिले। अंतिम समय में अगर भगवद्भावना रहेगी तो मानव देह पक्का मिलेगा और बाकी साधना हम आगे पूरी कर लेंगे। अगर हम 10 दिन अभ्यास कर लेंगे तो फिर राधे कहे बिना रहा नहीं जायेगा।
उधार मत करो। लापरवाही न करो। गंभीरता से सोचो। कल का दिन मिले न मिले। अगर हम एक एक क्षण का उपयोग कर लें तो तेज़ी से आगे बढ़ जायेंगे।