Focus on Sadhana - Do Your Sadhana Diligently.
Until you are here, observe silence, meditate on God, chant His names, and derive the benefit of satsang. The world is not going anywhere, so don't be careless.
As important as it is to meditate on God, it is equally important to remember death. We may not be alive the next moment.
You should be concerned about your own spiritual progress. Do not look at others.
Practice Roopdhyan. Practice realizing that Shyamsundar is seated in everyone's hearts. Even when you go outside, practice remembering that "God resides within me."
Do not talk unnecessarily nor listen to others. Unnecessary thinking and talking are harmful.
Through continuous practice, it becomes a habit, then you'll get addicted to sadhana and continue to reap the benefits of it later as well. Then, whenever you get some free time, you'll think, I must do sadhana and make spiritual progress.
Be humble. Accept yourself as fallen and a sinner, and do sadhana, shedding tears. This will purify the mind.
Don't look at the clock during sadhana.
Remember God and Guru even when you eat or bathe. Thinking about pure personalities will purify your mind, while thinking about impure worldly things will further pollute it.
Human life is very rare; you will not always receive it. Even the celestial Gods yearn for it. At least do enough devotion to receive a human body once again. All other earnings will stay behind here. You came to the world with a body but will leave formless and leave this physical body here. Only your actions and the amount of sadhana you diligently performed will accompany you.
Doing sadhana to show off, to be praised,
or to be called a great devotee is namaparadh.
Consider yourself lesser than everyone and accept that God resides in everyone. Don't have ill feelings towards anyone or hurt anyone. Your Shyamsundar resides within them, too. What will He think? If you cannot make someone happy, at least try not to hurt them.
Ponder over your own faults and remove them. Follow the instructions of the Guru and the scriptures and act accordingly. Become humble and tolerant. See God residing within everyone, and don't feel bad about small things.
Make yourself a great devotional aspirant, in whom God can come quickly and reside and by which you get Guru's grace quickly. Rectify your mind and intellect; this is very important.
Think before sleeping every day for 5 minutes, “Where all did I falter?” Ensure it doesn't repeat. We must get rid of both love and hatred in the world, or else God will say, I'll stay away from you.
Hence, make a firm resolve and focus, just as you would be cautious while walking on a busy street. Utilize each moment fruitfully.
Practice for 5-6 days, and you'll realize that your soul is experiencing peace and you feel happy. You will see how quickly you've made progress.
साधना पर ध्यान दो - आप लोग डटकर साधना कर लें।
यहाँ जब तक हैं मौन रहकर भगवान् का चिंतन करें, नाम गुणादि कीर्तन का लाभ उठायें। संसार तो आगे भी रहेगा। लापरवाही न करें।
जितना इम्पोर्टेन्ट भगवान् का स्मरण करना है, उतना ही मृत्यु का भी स्मरण करना है। अगला क्षण मिले न मिले।
आपको अपने कमाने की चिंता होनी चाहिए। दूसरों की ओर न देखें।
रूप ध्यान का अभ्यास कीजिये। हर समय सोचिये कि श्यामसुंदर हमारे हृदय में और सबके हृदय में बैठे हैं।
अनावश्यक न बात सुनिए न कहिये। अनावश्यक कोई चिंतन मनन हानिकारक है।
लगातार अभ्यास करने से वो हैबिट बन जाती है, फिर बिना किए रहा नहीं जायेगा। अभ्यास का असर बाद में भी रहता है। फिर जब भी आपको खाली समय मिलेगा, आप सोचेंगे कि मेरे पास दो घंटे हैं, साधना करके कुछ परमार्थ की कमाई कर लूं।
अपने को दीन पतित मानकर साधना कीजिये, आँसू बहाइये, इससे अंतःकरण की शुद्धि होगी।
साधना करते समय घड़ी को नहीं देखना है।
खाना खाते समय या नहाते समय भी हरि गुरु का स्मरण करें। शुद्ध वस्तु के स्मरण से मन शुद्ध होगा। गंदे संसार के स्मरण से मन और अशुद्ध होगा।
मानव देह कभी कभी मिलता है, देवता भी चाहते हैं। कम से कम इतनी कमाई कर लो कि आगे मानव देह तो मिले। बाकी कमाई तो यहीं रह जायेगी। जायेंगे निराकार, आये थे साकार। सिर्फ कर्म साथ जायेंगे - ईमानदारी से जितनी साधना की।
दिखावटी साधना (अपने को भक्त दिखाने के लिए, सम्मान के लिए) नामापराध होता है।
अपने को सबसे नीचा मानो और सब में भगवान् की भावना करो। किसी के प्रति दुर्भावना न करो, उसको कष्ट न दो। तुम्हारे श्यामसुंदर उसके अंदर भी बैठे हैं। वो क्या सोचेंगे? परपीड़ा सम नहीं अधमाई, न सुख दे सके तो कम से कम दुःख तो न दें।
अपनी कमियों को सोचें और उनको निकालें। गुरु और शास्त्र वेद के वाक्य के अनुसार साधना करें। तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना। सहनशील बनो, दीन बनो। सब में भगवद्भाव रखो। छोटी छोटी बातों को फील मत करो।
तुरंत अपने को बढ़िया साधक बनाओ जिसमें भगवान् का निवास जल्दी हो जाये, गुरु की कृपा जल्दी मिल जाये। मन और बुद्धि को ठीक करना पड़ेगा।
रोज़ सोने के पहले 5 मिनट सोचो - हमने कहाँ गलती की, कल ये न हो पाए। राग द्वेष दोनों को मिटाना है - अगर राग द्वेष कहीं भी हुआ, तो भगवान् कहेंगे नमस्ते, हम दूर रहेंगे।
इसलिए डटकर के ऐसे प्रयोग में लाइये जैसे आप शहर में चलते समय गाड़ियों से बचकर सावधान होकर चलते हैं। क्षण क्षण का सही उपयोग कर लो।
5-6 दिन अभ्यास करोगे तो महसूस करोगे कि कितना सुख मिल रहा है आत्मा को। देखोगे कि हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए इतनी जल्दी!