Jagadguru Ādesh: Meditate on God and Guru Constantly हरि गुरु को निरंतर भजो
We have to carefully understand one thing: the devatas of heaven desire the human body because, among the 84 lakh (8.4 million) kinds of bodies, this is the only one in which we can make a spiritual earning and go beyond the material realm. We can attain Divine bliss and eternally reside in the Godly abode. And there are no rules or regulations to attain God. All we have to do is to accept Them as ours because They alone can fulfill our self-interest. No one is ours other than God and Guru. Repeatedly contemplate, “We will have to go alone when the time comes; we will have to let go of the rest. Neither do we know how much time we have left to live, nor can we take someone with us when we die to serve us.”
We will not get this precious human body again and again. Each of the things we have received is extremely rare, 'durlabhaṃ trayamevaitat ':
Human body (kabahuṃka kari karunā nar dehī).
Meeting a genuine Saint.
We accept Him as a Saint, follow His instructions, and have faith in Him and His words.
Even after getting these three rare treasures, if one cannot attain their goal, neither there was, nor there is, nor will there be anyone more unfortunate.
Become alert and practice realizing this; we are never alone. Shyamsundar is seated within me and noting my ideas. For a second in each hour, and then progressively each half hour, for a second realize this fact. With just a few days of practice, you will start feeling His presence inside all the time. Then you will not waste any time. You will always be wary about whether or not we will be alive the next moment.
Think of this sadhana as a gift for me and definitely practice it. This will be your biggest seva. If you practice this and move forward to benefit yourself, then I (Shree Maharaj Ji) will have to come back here as quickly as possible. Start today itself.
हम लोगों को एक बात बहुत ध्यान रखने की है कि यह मानव देह को पाने के लिये स्वर्ग के देवता तरसते हैं क्योंकि 84 लाख देहों में यही एक देह ऐसा है जिसमें हम कमाई करके संसार से परे ईश्वरीय आनंद से युक्त सदा को भगवान के लोक में रहेंगे। और इसमें कोई नियम कायदा कानून नहीं है - केवल उनको अपना मानना है, क्योंकि अपना स्वार्थ सिद्ध उन्हीं से होगा। हरि गुरु के अतिरिक्त हमारा कोई नहीं है। बार बार सोचो - अकेले जाना होगा, बाकी सब छूट जायेंगे और न ही टाइम लिमिट है कि कितने दिन और रहेंगे और न तो ये है की एक आदमी अपने साथ ले जायेंगे सेवा के लिए। ।
यह अनमोल खज़ाना मानव देह बार बार नहीं मिलेगा। हमें जो मिली हैं उनमें एक एक चीज़ दुर्लभ हैं - दुर्लभं त्रयमेवैतत् -
मानव देह (कबहुँक करि करुना नर देही)
महापुरुष का मिलना
हम उनको महापुरुष मानकर, उनके आदेश के अनुसार चलें, उन पर और उनके वाणी पर विश्वास करें।
ये तीनों चीज़ अगर किसी को मिल गई हों, फिर भी अगर काम नहीं बना सका तो उसके समान कोई अभागा न था, न है, न होगा।
एक बात का बहुत सावधान होकर अभ्यास करो - हम अकेले नहीं हैं, हमारे हृदय में श्याम सुन्दर बैठकर हमारे आइडियाज़ नोट कर रहे हैं। इस बात को विश्वास करके हर एक घंटे में एक बार एक सेकंड को, फिर आधा घंटे में एक बार, एक सेकंड को महसूस करें।
थोड़े दिन के अभ्यास के बाद हर समय आपको अनुभव होने लगेगा कि वो अंदर बैठे हैं। फिर आप टाइम खराब नहीं करेंगे। हर समय होशियार रहेंगे कि अगला क्षण मिले न मिले। इस साधना का अभ्यास हमारी भेंट समझकर अवश्य कीजिये - यह सबसे बड़ी सेवा होगी। अगर आप अभ्यास करके अपना कल्याण करने के लिए आगे बढ़ेंगे तो हमको नाक के बल, सिर के बल फिर जल्दी आना पड़ेगा। आज ही से शुरू कर दें।